Monday, March 23, 2009

झुकी नज़रें

बातों ही बातों में
न कहते हुए भी
बहुत कुछ कह ग

वो इशारे ही काफी थे
समझने के लिये
उस बात को
जिसे जुबान तक न आने दे रहे थे

कल मुझसे नज़रें मिला पाओ
उस खातिर
आज नज़रें झुका कर
चले गए

लेकिन वो झुकी नजरें
भी छुपा न पाई वो कहानी
जिसे बयां न करना चाह रहे थे तुम














1 comment:

Anil Sawan said...

luvly template!
i luvd your words and the way u wrote it. u take care and have fun.